Site icon Rana Safvi

Ashwaq ullah Khan – poem

On 23rd March #shair  pays tribute to our beloved martyrs
Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev
A poem by Asfaqullah Khan

किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाए,
ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना;
मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं,
जबां तुम हो, लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना।

जाऊंगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा,
जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं “फिर आऊंगा, फिर आऊंगा,
फिर आकर के ऐ भारत मां तुझको आज़ाद कराऊंगा”.

जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,
मैं मुसलमान हूं पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूं;
हां खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूंगा,
और जन्नत के बदले उससे यक पुनर्जन्म ही माँगूंगा

Exit mobile version